Sunday, November 30, 2008

क्षमा शोभती उस भुजंग को ....

आज जब मैं यह ब्लॉग लिखने आया हु, कुछ सोच कर नही आया था, सिर्फ़ इतना था मेरे दिमाग में की जो हुआ अच्छा नही हुआ, पिच्छले एक हफ्ते मे मैंने जो देखा, सुना, पढ़ा, वह सिर्फ़ एक एहसास नही है, बल्कि एक ऐसी याद है जो कभी न मिट पायेगी । मैंने अपने मम्मी पापा से जो कुछ भी सुना था आज तक, भले ही इंदिरा गाँधी के बारे मे, या ६५ के अकाल के बारे मे या पाकिस्तान से युद्ध के बारे मे. आज ऐसी ही एक याद मेरे ज़हन मे हमेशा के लिए मुहर लगा चुकी है। मैंने अपने इस २३ साल के जीवन मे वो चीज़ें देख ली हैं जो शायद लोग एक शताब्दी मे नही देख पायें, इन चीज़ों को देखने की मुझे कोई खुशी नही है। पहली चीज़ जो मैंने अपने जीवन मे देखि वो कारगिल की लड़ाई थी, जो भले ही भारत जीत गया हो, लेकिन उसने अपने कई वीर बलिदान कर दिए, दूसरी एक याद जो मुझे आती है वो है कंधार मे प्लेन को हाई जैक कर के ले जाना, उस समय भी हम कुछ नही क्र सकते थे सिवाय अपने टीवी पे उस मंज़र के बारे मे देखने के। जब प्रमोद महाजन को उसी के भाई ने गोली मार के हत्या कर दी तोह मुझे विश्वास नही हुआ की ऐसा भी कोई भाई हो सकता है, लेकिन यह सच था। जब वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर से दो प्लेन टकराए वो मंज़र कभी भुलाया नही जा सकता, लेकिन एक बात ज़रूर कहूँगा, इन सब के बाद मुझे इतना विश्वास हो चला था की कुछ भी हो सकता है, और कुछ भी होने के बाद भी दुनिया रूकती नही है।

आज मेरी माँ ने एक कहानी सुनाई और अंत मे कहा की साथ मे जीना आसान है, लेकिन साथ मे मरना बहुत मुश्किल होता है। सही बात है, कितना आसान लगता है हमें यह सब बड़ी बड़ी बातें करना, और ऐसा होता है तब कुछ समय के लिए यह सब सोचा भी जाता है॥ की अब शायद दुनिया ख़तम हो जायेगी, अब क्या होगा इत्यादि लेकिन जब हम कुछ समय गुज़र लेते हैं, उस घटना के बाद तोह एहसास होता है की ज़िन्दगी नही रूकती है। सच है जो होना है वो हो के रहेगा, लेकिन हम उस घटना से आगे बढ़ सकते हैं, कुछ सीख सकते हैं, और लेकिन जिम्मेदारियों से मुह नही फेर सकते।

मैं अपनी निजी ज़िन्दगी यहाँ नही बताना चाहता क्यूंकि मैं करने मे काफ़ी संकोच करता हु , जब इतनी ताक़त मुझ मे आ जायेगी तब ज़रूर लिखूंगा , आज सिर्फ़ मे ताज की बात करना चाहता हु, जो हुआ अच्छा नही हुआ, ये सब जानते हैं, सभी दुखी भी हैं, हमने इतने सारे जांबाज़ वीर गंवाए और अब लोग काफ़ी बातें करेंगे इस बारे मे, शायद उम्र भर। लेकिन हम इतिहास मे वापस जा के इसे बदल नही सकते, और न ही किसी को इस बात के लिए दोष दिया जा सकता है, हो सकता है की इस साजिश मे कुछ हमारे अपने ही लोग मिले हो, हो सकता है की किसी के लापरवाही से ऐसा हुआ हो, लेकिन मुख्य बात यह है की हमें रुकना नही है, इस बात से आगे बढ़ना है, आर उन लोगो को सज़ा देना है जो इस घटना के जिम्मेदार हैं। आज सभइ दल एक दुसरे को इस बात के लिए दोष देंगे, सरकार भी दोषी है, पुलिस भी दोषी है, और हम सब भी दोषी हैं क्यूंकि हम ख़ुद कितनी परवाह करते हैं की किसी शहर मे आतंकवाद का साया हैबहुत से बहुत हम ये करेंगे की अपने निकट सम्बन्धियों और दोस्तों को फ़ोन लगा के उनका कुशल मंगल पूछ लेंगे। और इसके बाद हमारी ज़िम्मेदारी समाप्त हो जाई है, सरकार को गाली दे दी काम ख़तम, लेकिन कभी ये सोचा है की अगर हम सब थोड़े से सचेत हो जाएँ तोह इतनी बड़ी घटना रोकी जा सकती है, एक आम नागरिक क्या कर सकता है? इस बात का जवाब आप सभी के पास है।सिर्फ़ इतना करे की किसी को दोष देने से पहले अपनी ख़ुद की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ले, और अगर कुछ ग़लत होते देखें तोह उसे रोके। माना की एक मे इतनी ताक़त नही होती, लेकिन उस एक मे इतनी तोह ताक़त होगी की वो दुसरो को एक मिसाल दे , एक विचार दे, किसी और से क्यूँ, हम अपने राज नेताओं से कम से कम इतनी उम्मीद तोह कर सकते हैं, मीडिया से उम्मीद कर सकते हैं की वो अपने स्तर को सुधारे और इन बातों मे मसाला न तलाशने की बजाय लोगो मे जागरूकता लाये, और लोग अपने आप को जागरूक बनाए। अभी मेरे अन्दर बहुत गुस्सा है, की इतन बड़ी बात होने पर भी हम कुछ नही कर सकते। अगर यही घटना अमेरिका मे होती तोह अभी तक मुजाहिद्दीन की तलाश मे पाकिस्तान तहस नहस हो जाता, लेकिन ये भारत है भाई, अमेरिका और भारत मे यही अन्तर है, लेकिन धेर्य की एक सीमा होती है, और उस बाँध के टूटने मे मुझे नही लगता की अब ज्यादा समय लगेगा। जिस दिन यह बाँध टूटेगा उस दिन भारत एक हो जायेगा।

मुझे एक कविता याद आ गई जो कृष्ण और युधिस्ठिर के वार्तालाप के बारे मे है... कृष्ण कहते हैं की दुर्योधन को क्षमा करने के लिए कोई कारण नही बचा है और युधिस्ठिर को अब क्षमा नही बल्कि सज़ा देने के बारे मे सोचना चाहिए, जब युधिस्ठिर नही मानते तब कृष्ण कहते हैं:

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंत-हीन विष रहित विनीत सरल हो।

मुझे लगता है की मैंने अपनी बात कह दी है।

एक बार उन सभी वीरो को नमन करना चाहता हु जिन्होंने अपने नीजी स्वार्थ और ज़िन्दगी को परे रखते हुए जान लुटा दी। और उन सभी को श्रद्दांजलि देना चाहूँगा जो उस घटना के शिकार बने, उन सभी परिवारों के दुःख को समझ सकता हु जिन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य को खोया। उन सभी को मेरा यह ब्लॉग समर्पित है।